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लाल सड़कें, हरित सोच: NHAI ने टाइगर रिज़र्व से गुजरते हाईवे पर रचा इतिहास

नई दिल्ली | 15 दिसंबर 2025 |

भारत में राष्ट्रीय राजमार्गों के तेज़ विस्तार के साथ अब बुनियादी ढांचे की परिभाषा बदल रही है। सवाल सिर्फ़ तेज़ और चौड़ी सड़कों का नहीं, बल्कि मानव सुरक्षा, वन्यजीव संरक्षण और पर्यावरण संतुलन को एक साथ साधने का है। इसी दिशा में राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) ने सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय (MoRTH) के मार्गदर्शन में एक ऐसी पहल शुरू की है, जो भारत में सतत और संवेदनशील हाईवे विकास का नया मानक स्थापित करती है।

मध्य प्रदेश के एक संवेदनशील वन एवं घाट क्षेत्र से गुजरने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग पर लागू यह परियोजना दिखाती है कि आधुनिक इंजीनियरिंग किस तरह विकास और संरक्षण के बीच संतुलन बना सकती है।


टाइगर रिज़र्व से होकर गुजरता सुरक्षित राष्ट्रीय राजमार्ग

यह अभिनव पहल मध्य प्रदेश के वीरांगना दुर्गावती टाइगर रिज़र्व (पूर्व में नौरादेही वन्यजीव अभयारण्य) से होकर गुजरने वाले 11.96 किलोमीटर लंबे हाईवे प्रोजेक्ट के 2.0 किलोमीटर घाट सेक्शन में लागू की गई है। यह क्षेत्र जैव विविधता से समृद्ध है और यहां वन्यजीवों की नियमित आवाजाही होती है, जिससे सड़क दुर्घटनाओं और मानव-वन्यजीव संघर्ष का खतरा बना रहता है।

इन्हीं जोखिमों को ध्यान में रखते हुए NHAI ने परंपरागत उपायों से हटकर वैज्ञानिक, व्यवहार-आधारित और पर्यावरण-अनुकूल समाधान अपनाया है।


भारत की पहली ‘टेबल-टॉप रेड मार्किंग’ तकनीक

भारत में पहली बार किसी राष्ट्रीय राजमार्ग पर ‘टेबल-टॉप रेड मार्किंग’ तकनीक को अपनाया गया है। यह तकनीक दुबई की शेख ज़ायद रोड जैसी अंतरराष्ट्रीय सड़कों पर लागू वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं और शोध से प्रेरित है।

इस प्रणाली के तहत चिन्हित जोखिम क्षेत्र में सड़क की सतह पर 5 मिमी मोटी, गर्म थर्मोप्लास्टिक लाल परत बिछाई गई है। यह चमकीला लाल रंग वाहन चालकों को तुरंत सचेत करता है कि वे गति-सीमित और वन्यजीव-संवेदनशील क्षेत्र में प्रवेश कर रहे हैं।

इस तकनीक की खासियत यह है कि:

  • हल्की उभरी हुई सतह से स्पर्शीय और श्रवण संकेत मिलता है
  • चालक बिना अचानक ब्रेक लगाए स्वाभाविक रूप से गति कम करते हैं
  • यातायात सुचारु, नियंत्रित और सुरक्षित बना रहता है

कम हस्तक्षेप, अधिक सुरक्षा

पारंपरिक स्पीड ब्रेकर या रंबल स्ट्रिप्स के विपरीत, यह प्रणाली पर्यावरण पर न्यूनतम प्रभाव डालती है:

  • वन्यजीवों के आवास और आवाजाही में कोई बाधा नहीं
  • सड़क की संरचना या जलनिकासी प्रणाली में कोई बदलाव नहीं
  • कम शोर, जिससे वन्यजीवों पर तनाव नहीं पड़ता
  • आसान रखरखाव और भविष्य में पूरी तरह हटाई जा सकने वाली व्यवस्था

इसके अलावा, सड़क के दोनों ओर सफेद शोल्डर लाइनें खींची गई हैं, जिससे वाहन कच्चे या वन क्षेत्र में जाने से बचते हैं और चालक मार्गदर्शन बेहतर होता है।


वन्यजीव सुरक्षा के लिए समग्र और वैज्ञानिक व्यवस्था

इस हाईवे कॉरिडोर पर केवल गति नियंत्रण ही नहीं, बल्कि समग्र वन्यजीव सुरक्षा ढांचा तैयार किया गया है।

मुख्य उपाय इस प्रकार हैं:

  • पूरे 11.96 किमी हिस्से में 25 समर्पित पशु अंडरपास, जिन्हें वैज्ञानिक अध्ययन के आधार पर पशु मार्गों पर बनाया गया है
  • अंडरपास को प्राकृतिक जमीन और जल प्रवाह से जोड़ा गया है, ताकि जानवर सहज रूप से इनका उपयोग करें
  • सड़क के दोनों ओर निरंतर चेन-लिंक फेंसिंग, जिससे जानवर सड़क पर न आएं और सुरक्षित अंडरपास की ओर निर्देशित हों
  • छोटे पुलों पर कैमरे, जो पशु क्रॉसिंग के रूप में भी कार्य करते हैं, ताकि गतिविधियों की निगरानी हो सके
  • पुलों और जंक्शनों पर सोलर लाइटिंग, जिससे दृश्यता बढ़े और पर्यावरण पर अतिरिक्त भार न पड़े

हालांकि यह 2.0 किमी घाट सेक्शन ज्यामितीय कारणों से डेंजर ज़ोन माना जाता है, लेकिन फेंसिंग और अंडरपास प्रणाली यह सुनिश्चित करती है कि जानवर सड़क पर सीधे न आ सकें, जिससे मानव और वन्यजीव—दोनों की सुरक्षा होती है।


सतत हाईवे विकास का राष्ट्रीय मॉडल

यह परियोजना भारत में सड़क निर्माण की सोच को नई दिशा देती है। वैश्विक अनुभव, वैज्ञानिक शोध और स्थानीय पारिस्थितिकी समझ के साथ तैयार यह मॉडल:

  • सड़क दुर्घटनाओं में कमी लाकर मानव जीवन की रक्षा करता है
  • वाहन टक्कर से होने वाली वन्यजीव मृत्यु को रोकता है
  • वन पारिस्थितिकी और जैव विविधता को सुरक्षित रखता है
  • यात्रियों के लिए सुरक्षित, सहज और आरामदायक यात्रा सुनिश्चित करता है

आगे की राह

जैसे-जैसे भारत जंगलों, पहाड़ों और वन्यजीव गलियारों से होकर बुनियादी ढांचा विकसित कर रहा है, यह पहल आने वाली परियोजनाओं के लिए अनुकरणीय और दोहराने योग्य मॉडल बनकर उभर रही है।

आज की इस नई सोच में लाल सड़कें खतरे का नहीं, बल्कि सोची-समझी इंजीनियरिंग, हरित दृष्टिकोण और जिम्मेदार विकास का प्रतीक हैं—जहां प्रगति और प्रकृति एक-दूसरे के विरोधी नहीं, बल्कि सहयोगी बनकर आगे बढ़ते हैं।


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