यूनेस्को ने गुजरात के नृत्य गरबा को बहुमूल्य सांस्कृतिक धरोहर की सूची में शामिल कर दिया है। गरबा भारत से 15वां है जिसने इस महत्वपूर्ण सूची में अपनी जगह बनाई है। इससे साफ होता है कि गरबा ने समाज में एकता और महिला-पुरुष समावेश को बढ़ावा देने में कैसा महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
गरबा गुजरात की एक प्राचीन और धार्मिक परंपरा है,गरबा नाम संस्कृत के गर्भ-द्वीप से है।इस नृत्य शैली में कलाकर बीच में माँ दुर्गा के ज्योति स्वरूप में स्थापित कर उसके चारो और घूम घूम कर नृत्य करते है। गरबा नृत्य के लिए कम से कम दो सदस्यों का होना अनिवार्य होता है| इस नृत्य में ‘डांडिया’ का प्रयोग किया जाता है| इस डांडिया को नृत्य करते समय आपसे में टकराकर नृत्य किया जाता है| और अब यह एक जीवंत प्रथा के रूप में गुजरात से निकल कर विश्व पटल पर अपनी नयी पहचान के साथ सामने आ रहा है। यह नृत्य विश्व को भारतीय सांस्कृतिक समृद्धि से साक्षात्कार कराता है ।
2003 की सम्मेलन की मूल्यांकन निकाय ने भारत को एक उत्कृष्ट डॉसियर प्रस्तुत करने के लिए सराहा। इस रिपोर्ट में गरबा को विविधता में एकता का प्रतीक माना गया है, जो सामाजिक समानता में योगदान करता है। यूनेस्को की मान्यता से यह उम्मीद की जाती है कि इससे गरबा की वैश्विक दृश्यता में वृद्धि होगी, जो इसकी मूल वास्तविकता को संरक्षित करेगी।
भारत में यूनेस्को अमूर्त सांस्कृतिक विरासत सूची (UNESCO Intangible Cultural Heritage List) पहले से 14 धरोहरें अंकित है जो की इस प्रकार है मणिपुर के संकीर्तन, ढोल और नृत्य, दुर्गा पूजा, कुंभ मेला, योग, नोवरूज़, जंडियाला गुरु के ठठेरों के बीच बर्तन बनाने के पारंपरिक पीतल और तांबे के शिल्प, बौद्ध जप जैसे तत्व शामिल हैं। लद्दाख, छऊ नृत्य, कालबेलिया लोक गीत और राजस्थान के नृत्य, मुडियेट्टू, केरल के अनुष्ठान थिएटर और नृत्य नाटक, राममन, वैदिक मंत्रोच्चारण की परंपरा और रामलीला।
यह खबर सभी भारतीयों के गर्व का अहसास देता है।
Garba also in UNESCO's Intangible Cultural Heritage (ICH) list