
पटना। बिहार विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय जनता दल (RJD) की करारी हार के बाद, लालू प्रसाद यादव के परिवार में एक ऐसा भावनात्मक तूफान उठ खड़ा हुआ है, जिसने हर किसी को झकझोर दिया है। वह बेटी, जिसने अपने बीमार पिता को नया जीवन देने के लिए अपनी किडनी दान करने जैसा महान त्याग किया था, आज उसी परिवार और राजनीति से नाता तोड़ने को मजबूर हो गई है। यह सिर्फ राजनीतिक हार नहीं, बल्कि एक बेटी के आत्म-सम्मान और पारिवारिक अपेक्षाओं के बीच फंसे दर्द की कहानी है।
जीवनदान का त्याग, अपमान का प्रतिफल?
रोहिणी आचार्य का नाम हर बिहारी के दिल में तब सम्मान से गूँज उठा था, जब उन्होंने अपने पिता लालू प्रसाद यादव को किडनी दान कर उन्हें जीवन का उपहार दिया था। सिंगापुर में रहने वाली रोहिणी ने उस समय कहा था, “यह तो बस एक छोटा सा मांस का टुकड़ा है, मैं अपने पापा के लिए कुछ भी कर सकती हूँ।” इस त्याग ने उन्हें न केवल एक आदर्श बेटी, बल्कि राजनीतिक गलियारों में एक ‘फाइटर बेटी’ के रूप में पहचान दिलाई।

लेकिन, बिहार चुनाव के निराशाजनक नतीजों के बाद, उनके नवीनतम सोशल मीडिया पोस्ट ने लालू परिवार की आंतरिक कलह को सार्वजनिक कर दिया है। रोहिणी ने ऐलान किया कि वह “राजनीति छोड़ रही हैं और अपने परिवार से नाता तोड़ रही हैं”। इस भावनात्मक विस्फोट के पीछे उन्होंने सीधे तौर पर राजद नेता संजय यादव और रमीज़ का नाम लिया और आरोप लगाया कि उनसे ही ऐसा करने को कहा गया है, और वह ‘सारा दोष अपने ऊपर ले रही हैं’।
जीवनदान का त्याग, अपमान का प्रतिफल?
रोहिणी आचार्य का नाम हर बिहारी के दिल में तब सम्मान से गूँज उठा था, जब उन्होंने अपने पिता लालू प्रसाद यादव को किडनी दान कर उन्हें जीवन का उपहार दिया था। सिंगापुर में रहने वाली रोहिणी ने उस समय कहा था, “यह तो बस एक छोटा सा मांस का टुकड़ा है, मैं अपने पापा के लिए कुछ भी कर सकती हूँ।” इस त्याग ने उन्हें न केवल एक आदर्श बेटी, बल्कि राजनीतिक गलियारों में एक ‘फाइटर बेटी’ के रूप में पहचान दिलाई।
लेकिन, बिहार चुनाव के निराशाजनक नतीजों के बाद, उनके नवीनतम सोशल मीडिया पोस्ट ने लालू परिवार की आंतरिक कलह को सार्वजनिक कर दिया है। रोहिणी ने ऐलान किया कि वह “राजनीति छोड़ रही हैं और अपने परिवार से नाता तोड़ रही हैं”। इस भावनात्मक विस्फोट के पीछे उन्होंने सीधे तौर पर राजद नेता संजय यादव और रमीज़ का नाम लिया और आरोप लगाया कि उनसे ही ऐसा करने को कहा गया है, और वह ‘सारा दोष अपने ऊपर ले रही हैं’।
“गंदी किडनी” के ताने और मायके से बेदखली का दर्द
रोहिणी के बाद के बयानों में वह दर्द छलका है, जो पारिवारिक राजनीति की अमानवीय सच्चाई को बयां करता है। उन्होंने खुलकर आरोप लगाया है कि उन्हें परिवार के भीतर अपमानित किया गया और उन्हें यहां तक कहा गया कि “मैंने अपने पिता को अपनी गंदी किडनी लगवा दी, करोड़ों रुपए लिए, टिकट लिया तब लगवाई गंदी किडनी।”
एक बेटी, जिसने निःस्वार्थ भाव से अपने पिता की जान बचाई, उसे अब अपने ही मायके में अपमान, गाली और ‘परिवार से निकाले जाने’ के दर्द से गुजरना पड़ रहा है। उनका यह भावुक बयान – “मेरा कोई परिवार नहीं है। आप ये बात संजय यादव, रमीज और तेजस्वी यादव से पूछ सकते हैं। इन्होंने ही मुझे परिवार से निकाला। ये कोई जिम्मेदारी नहीं लेना चाहते।” – इस बात का स्पष्ट संकेत है कि पार्टी की चुनावी हार का ठीकरा अब उन पर फोड़ा जा रहा है, जिनका एकमात्र ‘गुनाह’ अपने पिता को बचाना था।
रोहिणी ने अन्य विवाहित बेटियों को एक कड़वी सलाह देते हुए लिखा, “सभी बेटी-बहन, जो शादीशुदा हैं उनको मैं बोलूंगी कि जब आपके मायके में कोई बेटा-भाई हो, तो भूल कर भी अपने भगवान रूपी पिता को नहीं बचाएं…।”
रोहिणी आचार्य का यह निर्णय न केवल राजद के लिए एक बड़ा राजनीतिक झटका है, बल्कि यह उस आत्म-सम्मान की लड़ाई है, जहाँ एक बेटी का निःस्वार्थ त्याग भी सत्ता की राजनीति और पारिवारिक वर्चस्व के सामने हार गया।



