फ़िल्मी कहानियों में अक्सर देखा जाता है कि कोई बच्चा जब अपने परिवार से बिछड़ जाता है. उसके शरीर पर कोई ऐसा निशान बना रहता है जो उसके परिवार की निशानी होती है और यही निशानी उसे उसके बिछड़े परिवार से दुबारा मिलाने में मदद करती है. इसी से मिलता मामला मुंबई में सामने आया ह। फर्क बस इतना है कि निशानी के तौर पर उसके शरीर में कोई टैटू या जन्म के समय का निशान नहीं बल्कि एक QR वाला लॉकेट जो उसके गले में था जिसके अंदर क्यूआर कोड था. जिसमे एक NGO का मोबाइल नंबर था। उस मोबाइल नंबर से संपर्क करने से बच्चे के अभिभावक के बारे में सही जानकारी मिल गयी।
आधुनिक तकनीकों के कारण आज एक बिखरा परिवार एक हो गया। यह मामला महाराष्ट्र के मुंबई में कोलाबा पुलिस थाने इलाके का है. जहां मुबई पुलिस ने क्यूआर कोड के जरिए मानसिक रूप से अस्वस्थ एक नाबालिग को उसके परिवार से मिला दिया. क्यूआर कोड की मदद से गम में डूबे परिवार में एक बार फिर से खुशियां लौट आईं.और नाबलिग की ज़िंदगी बच गयी।
QR कोड का क्या होता है
QR कोड का पूरा नाम ‘Quick Response Code’ है। यह एक प्रकार का बारकोड है। QR कोड्स का विकास 1994 में जापानी कॉर्पोरेशन डेंसो वेव जो की डेंसो का एक विभाग, जो कि ऑटोमोबाइल कंपनी टोयोटा मोटर कॉर्पोरेशन की सहायक कंपनी है। इसका प्रयोग ऑटोमोबाइल के पार्ट्स को असेंबली प्रक्रिया के दौरान ट्रैककरने के लिए किया जाता था।अब इसका उपयोग किसी भी उत्पाद की जानकारी, वेबसाइट लिंक, संदेश या किसी अन्य विषय की जानकारी को आसानी से साझा करने के साथ ही UPI पेमेंट्स के लिए भी होने लगा है।
एक QR कोड को पढ़ने के लिए आपको अपने मोबाइल फोन के कैमरा को उस पर फोकस करना होता है। फिर आपके फोन पर उसमे संरक्षित जानकारी दिखाई देती है। यदि यह एक वेबसाइट का लिंक है, तो आप उस पर क्लिक करके सीधे वेबसाइट पर जा सकते हैं। यदि यह एक संदेश है, तो आप उसे पढ़ सकते हैं और अगर यह किसी उत्पाद की जानकारी है, तो आप उसकी विशेषताओं को देख सकते हैं।
यह बहुत ही उपयोगी है, क्योंकि इससे आपको फटाफट बहुत सारी जानकारी मिल जाती है। QR कोड आपको खोजने में और जानकारी प्राप्त करने में बहुत ही मददगार है। इसलिए, QR कोड आम जनजीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया है।